अपोलो अस्पताल के सर्जिकल गैस्ट्रो विशेषज्ञ डॉ. अंशुमान कौशल ने वायरल वीडियो में कहा कि आमतौर पर बिकने वाले प्रोबायोटिक्स पेट की एसिडिटी में बचते नहीं और बिना फाइबर वे शरीर में प्रभावी नहीं हो पाते।
Apollo Gastro Surgeon Dr. Anshuman Kaushal explains that most commercial probiotics die in the acidic stomach environment and cannot work without adequate dietary fiber.
भारत में प्रोबायोटिक्स का बाजार तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन अपोलो अस्पताल के सर्जिकल गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी विशेषज्ञ डॉ. अंशुमान कौशल ने हाल ही में एक वायरल वीडियो के माध्यम से चेतावनी दी है कि आमतौर पर बेचे जाने वाले प्रोबायोटिक्स का बड़े पैमाने पर उपयोग लोगों को गुमराह कर रहा है। उनका कहना है कि प्रोबायोटिक सप्लीमेंट तभी असरदार हो सकता है जब वह पर्याप्त मात्रा में डाइटरी फाइबर (प्रीबायोटिक्स) के साथ लिया जाए।
डॉ. कौशल के अनुसार, प्रोबायोटिक्स "अच्छे बैक्टीरिया" कहे जाते हैं, लेकिन उनका लाभ अत्यंत स्ट्रेन-विशिष्ट होता है। यानी हर प्रोबायोटिक हर व्यक्ति या हर रोग में काम नहीं करता। इसके अतिरिक्त, अधिकांश प्रोबायोटिक बैक्टीरिया पेट की अत्यधिक अम्लीयता में जीवित ही नहीं रह पाते।
उनका कहना है कि जो बैक्टीरिया जीवित रह भी जाते हैं, वे बिना प्रीबायोटिक फाइबर के शरीर में टिकते ही नहीं। इसे समझाते हुए वे कहते हैं:
“यह वैसा ही है जैसे किसी किरायेदार को कमरे में बुला लें लेकिन उसके लिए बिजली, पानी और बिस्तर का इंतज़ाम ही न करें।”
प्रोबायोटिक्स vs प्रीबायोटिक्स: विज्ञान क्या कहता है?
प्रोबायोटिक्स जैसे Lactobacillus और Bifidobacterium कुछ विशेष परिस्थितियों में उपयोगी पाए जाते हैं—जैसे:
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एंटीबायोटिक्स लेने के बाद
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कुछ प्रकार की डायरिया
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Irritable Bowel Syndrome (IBS)
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गैस्ट्रो सम्बंधित विशेष स्थितियाँ
लेकिन आम लोगों द्वारा लिए जाने वाले साधारण “वन-साइज़-फिट्स-ऑल” प्रोबायोटिक सप्लीमेंट वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित नहीं हैं।
इसके विपरीत, प्रीबायोटिक्स (फाइबर) आंतों के अच्छे बैक्टीरिया के लिए भोजन का काम करते हैं। यह प्याज, लहसुन, केला, ओट्स, गेहूँ का चोकर, दालें और कई सब्जियों में पाया जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार रोजाना 20–25 ग्राम फाइबर जरूरी है, लेकिन भारतीय डाइट में यह आमतौर पर बहुत कम होता है।
भारतीय प्रोबायोटिक उद्योग: तेजी से बढ़ता बाजार
भारत में प्रोबायोटिक्स के उद्योग ने हाल के वर्षों में दुगुनी वृद्धि देखी है।
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2021: ₹1,016 करोड़
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2025: ₹2,070 करोड़
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2033 तक अनुमान: $1.3 बिलियन+
डॉ. कौशल का मानना है कि कंपनियाँ सप्लीमेंट्स की मार्केटिंग तो खूब करती हैं, लेकिन फाइबर—जो वास्तव में प्रोबायोटिक्स को कार्य करने में मदद करता है—उसके बारे में जागरूकता बेहद कम फैलाती हैं।
कारण स्पष्ट है: फाइबर लाभदायक है, लेकिन फायदेमंद नहीं (कंपनियों के लिए)।
गट हेल्थ के लिए व्यावहारिक सुझाव
डॉ. कौशल बताते हैं कि प्राकृतिक भोजन में मौजूद प्रोबायोटिक्स और प्रीबायोटिक्स का संयोजन किसी भी सप्लीमेंट से कहीं बेहतर परिणाम देता है। कुछ आसान घरेलू विकल्प:
✔ प्राकृतिक संयोजन (Probiotic + Prebiotic Combos):
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केला + दही
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ओट्स + योगर्ट
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सलाद + फर्मेंटेड अचार
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बाजरा/रागी + छाछ
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इडली + सांभर
ये सभी खाद्य पदार्थ आंतों के माइक्रोबायोम को प्राकृतिक रूप से संतुलित करते हैं।
वैश्विक वैज्ञानिक राय
अमेरिकन गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिकल एसोसिएशन (AGA) और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाएँ भी यह मानती हैं:
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अधिकांश लोगों को प्रोबायोटिक सप्लीमेंट्स की आवश्यकता नहीं होती।
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अधिक फाइबर वाली डाइट स्थायी रूप से गट हेल्थ सुधारती है।
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कम फाइबर वाली डाइट आंतों के अच्छे बैक्टीरिया को घटा सकती है।
यानी, लंबे समय तक स्वस्थ आंतों के लिए सबसे अच्छा उपाय है—
प्राकृतिक, फाइबर युक्त भोजन।
डॉ. अंशुमान कौशल का संदेश स्पष्ट है:
✔ प्रोबायोटिक सप्लीमेंट्स हर किसी के लिए नहीं हैं।
✔ बिना फाइबर, प्रोबायोटिक्स का कोई लाभ नहीं।
✔ प्राकृतिक खाद्य पदार्थ सबसे सुरक्षित और प्रभावी समाधान हैं।
यदि आप गट हेल्थ वास्तव में सुधारना चाहते हैं, तो पहला कदम है—
फाइबर बढ़ाएँ, नेचुरल प्रोबायोटिक स्रोत अपनाएँ और सप्लीमेंट्स पर निर्भरता कम करें।